नमस्कार दोस्तों!
"अगर मन में कुछ करने कि इच्छा हो और दिल में काम को करने का भरपूर उत्साह हो तो इस संसार में कुछ भी करनाhttps://youtu.be/j8Kg65CGRVo असम्भव नहीं है"
किसी भी बड़े लक्ष्य को हासिल करने का एकमात्र उपाय है पूर्ण रूप से लक्ष्य के प्रति समर्पित हो जाना और पूरे त्याग और बलिदान के साथ लक्ष्य को समर्पित हो जाना,और कोई भी बड़े लक्ष्य को पाने में सफलता मांगती है-पसीने की अंतिम बूंद।
सपने देखने की सबको आज़ादी है और हर किसी को बड़े और महान सपने देखने का अधिकार है
महान वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम ने कहा था " ज़िन्दगी में मुश्किलें ज़रूरी होती हैं, सफलता का जश्न मनाने में मुश्किलों का बहुत बड़ा हाथ होता है"
आज ऐसे ही कुछ महान हस्तियों की बात करते हैं जिन्होंने अपने दम पर मुश्किलों का डटकर सामना किया और एक महान मुकाम हासिल किया,
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1- आईएएस आरती डोगरा;
राजस्थान कैडर की आईएएस अधिकारी आरती डोगरा का कद मात्र 3 फीट है, बचपन में इनके पैदा होने पर घरवालों ने इनको मार देने के बारे में सोचा लेकिन कैसे भी करके इनकी माता ने इनका पालन पोषण किया और ये बड़ी हुईं तो इनको अपने दिव्यांग होने का पता चला एक तो ये एक लड़की और ऊपर से दिव्यांग इनको समाज में हीन भावना की दृष्टि से देखा जाने लगा, लेकिन ये बात आरती को पसंद नहीं आया और उन्होंने इसका बदला लेने का अचूक तरीका खोज निकाला और अपनी सारी शक्ति पढ़ाई में झोंक दी और अंततः एक आईएएस अधिकारी बनकर अपने घरवालों,रिश्तेदारों और समाज के लोगों को सबक सीखा दी।
इन्होंने महिलाओं और बेटियों के लिए अनेकों मुहिम चला चुकीं हैं जिसकी तारीफ प्रधानमंत्री मोदी भी कर चुके हैं।
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2- अंसार अहमद शेख;
एक सामान्य ऑटो चालक के बेटे जिनको देश का सबसे कम उम्र का आईएएस होने का गौरव भी प्राप्त है इन्होंने मात्र 21 वर्ष की उम्र में प्रथम प्रयास में ही आईएएस की परीक्षा उत्तीर्ण की और 361वीं रैंक हासिल की,
इनके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी ना होने के कारण और परिवार बड़ा होने के कारण कभी कभी दो वक़्त का खाना भी मुश्किल से नसीब होता था ये लगातार 4 सालों तक बिना किसी छुट्टी या बहाने के 10 से 12 घंटे की पढ़ाई करते रहे और परीक्षा के कुछ महीनों पहले ये समय बढ़कर 15 से 16 घंटे तक पढ़ने लगे,
इनके भाई ने अपनी पढ़ाई छोड़ कर काम करने में लग गया और पैसे कमाने लगा और घर की आर्थिक स्थिति में मदद करने लगा, अंसार बताते हैं की इनकी सफलता में इनके भाई का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है जिनको वे शुक्रिया अदा करना चाहते हैं।
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3- कुलदीप द्विवेदी;
27 साल के युवा आईपीएस अधिकारी की ज़िन्दगी बहुत संघर्षों भारी रही है इनके पिता सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते थे और बहुत ही मुश्किल से घर का खर्चा और उनकी पढ़ाई लिखाई का खर्चा चल पाता था,
पेशे से पिताजी भले ही एक मामूली से सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते थे लेकिन उन्होंने कभी भी अपने बेटे को किसी भी प्रकार की समस्या नहीं होने दी और हर तरीक़े से शिक्षा और नैतिकता का ज्ञान अपने बेटे को दिया,और इन्हीं सब बातों का परिणाम है कि आज कुलदीप इस मुकाम पर पहुंचे और पूरे परिवार और समाज को गर्व करवाया,
कुलदीप का मानना है यदि एकाग्रचित मन से यदि कोई संकल्प लिया जाए और उस पाने कि कोशिश की जाए तो परिस्थिति जैसी भी हो सफलता प्राप्त की जा सकती है।
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4- निरिश राजपूत;
एक सामान्य से दर्जी का बेटा जिसे कभी किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक दिन ये आईएएस अधिकारी बन जाएगा,ये इनके कठिन परिश्रम और पुरुषार्थ का ही परिणाम है कि आज इनको इस मुकाम तक पहुंचाया,
इन्होंने सिद्ध कर दिया कि किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने में बैकग्राउंड कोई भूमिका नहीं निभाती, आपकी कड़ी मेहनत और आपकी ईमानदारी ही आपको आगे ले जाती है और अंततः आपको सफलता मिलती ही है,
इन्होंने अपने चौथे प्रयास में इस परीक्षा को उत्तीर्ण किया और 370वीं रैंक हासिल की इनके प्रथम तीन प्रयास असफल रहे लेकिन इन्होंने कभी हर नहीं मानी और लगातार बेहतरीन से बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त किया,
इनका परिवार गरीबी से जूझ रहा था जिसके चलते इनको अखबार बेंचने का काम भी करना पड़ा और कई और नौकरियां भी इनको परिवार का पेट पालने के लिए करनी पड़ी।
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5- हृदय कुमार;
एक बहुत ही गरीब किसान के घर इनका जन्म हुआ था, गरीबी रेखा के नीचे इनका स्तर था और बड़ी मुश्किल से घर की रोज़ी रोटी चल पाती थी,2014 के सिविल सर्विस परीक्षा में 1079वीं रैंक हासिल किए।
हृदय कुमार अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गांव के ही प्राइमरी स्कूल से प्राप्त की,पहले इनका मन क्रिकेट ने अपना भविष्य बनाने का था लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था जिससे इनकी सिविल सर्विस में रुझान बढ़ा और पहले दो प्रयासों में असफल रहे लेकिन तीसरे प्रयास में परीक्षा को पास करके ही माने,इतनी परेशानियों के बावजूद भी इन्होंने कभी हार नहीं मानी और अंत में सफलता हासिल करके ही माना।